Capacitor क्या है?
what is capacitor in hindi
capacitor एक पैसिव कॉम्पोनेन्ट है यह इलेक्ट्रिकल एनर्जी को इलेक्ट्रिक फील्ड में स्टोर करता है. कैपासिटर का capacitance फैरड में नापा जाता है मतलब इसका यूनिट फैरड है. और alternating करंट को बहने देता है और डायरेक्ट करंट को बहने से रोकता है.
कंस्ट्रक्शन की बात करे तो इसमे दो मेटल की प्लेट्स होती है वह प्लेट्स एक दुसरे से कनेक्ट नहीं होती मतलब उनके बिच में गैप होता है उस गैप में dielectric मटेरियल डाला जाता है.कैपासिटर एक स्टोरिंग डिवाइस तो है लेकिन ये ज्यादा energy को स्टोर नहीं कर पाता. अगर हम इसे सप्लाई के अक्रॉस में कनेक्ट करेंगे तो तुरंत चार्जिंग हो जायेगा मतलब इसमे चार्ज स्टोर हो जायेगे और अगर हम इसे लोड के अक्रॉस कनेक्ट करेंगे तो ये तुरंत डिस्चार्ज भी हो जायेगा.
Working of Capacitor (कैपासिटर कैसे काम करता है)
कैपासिटर में दो प्लेट्स होती है समजो एक anode है और एक cathode है अगर हम बैटरी का पॉजिटिव टर्मिनल anode से कनेक्ट करेंगे और negative टर्मिनल cathode से कनेक्ट करेंगे तो anode में जिनते नेगेटिव चार्ज होते वह बैटरी के पॉजिटिव टर्मिनल के तरफ जाते है इसके कारण anode प्लेट में इलेक्ट्रान ज्यादा हो जाते है प्रोटोन से और प्लेट्स में positive चार्ज स्टोर हो जाते है.
अब देखिये जो cathode है वह बैटरी के नेगेटिव टर्मिनल को कनेक्ट होता है इसलिए anode से आने वाले नेगेटिव चार्ज बैटरी में से निकलकर cathode प्लेट तक जाते है और वहा पर जमा हो जाते है. क्यूंकि dielectric मटेरियल होने के कारण वह cathode से anode तक जा नहीं सकते इसीलिए cathode प्लेट पर नेगेटिव चार्ज जमा हो जाते है.
अब देखिये दोनों प्लेट्स पर अलग अलग चार्ज होते है इसके कारण कैपासिटर के अक्रॉस में हमें वोल्टेज मिलाता है और जब कैपासिटर का वोल्टेज बैटरी के वोल्टेज के बराबर हो जाता है तो कैपासिटर full चार्ज हो जाता है. और जब बैटरी को हटाते है तो चार्ज प्लेट्स पर स्टोर ही रहते है.
कैपासिटर का जीतना रेटेड वोल्टेज होगा उतना ही वोल्टेज अप्लाई करना जरुरी है अगर ज्यादा वोल्टेज अप्लाई किया तो ज्यादा चार्ज स्टोर होगे और इसके कारण कैपासिटर के ब्लास्ट होने की संभावना बढ़ती है.
Need of capacitor in an electronic circuit
(कैपासिटर की इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में जरुरत क्यूँ है?)
अभी हम एक LED का उदहारण लेते हे अच्छे से समजने के लिए, समजो LED के टर्मिनल्स बैटरी से कनेक्टेड है और LED जल(glow) रही है लेकिन कुछ लोस्सेस के कारण LED के अक्रॉस में सेम वोल्टेज नहीं मिलेगा इसीलिए स्थिर (constant) वोल्टेज के लिए लोड के अक्रॉस में कैपासिटर को कनेक्ट करते है.अभी कैपासिटर भी चार्ज होगा और वह भी कुछ एनर्जी स्टोर्ड करेगा और लोड को देगा अगर कैपासिटर के इनपुट वोल्टेज कम ज्यादा होगा तो भी कैपासिटर के अक्रॉस में सेम वोल्टेज मिलेगा. क्यूँ की इनपुट में आने बाले चार्ज का बहाव कम ज्यादा होगा और वह चार्ज स्टोर होगे कैपासिटर में लेकिन आउटपुट से स्थिर रेट से चार्ज फ्लो होगे.
आपने बहोत बार देखा होगा मोबाइल चार्जर में या फिर इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में अगर हम बैटरी को या फिर सप्लाई को बंद करते है तो LED तुरंत बंद नहीं होती वह LED कुछ देर बाद बंद होती है यह कैपासिटर की कारण होता है.
Need of Capacitor in Electrical Circuit (कैपासिटर की इलेक्ट्रिकल सर्किट में जरुरत क्यूँ है?
कैपासिटर को इलेक्ट्रिकल सर्किट में पॉवर फैक्टर (power factor) को improve करने के लिय किया जाता है. अगर power फैक्टर कम है इसका मतलब करंट ज्यादा लग रही है उपकरणों को चलने के लिए और अगर पॉवर फैक्टर ज्यादा है इसका मतलब करंट कम लग रही है उपकरणों को चलने के लिए.करंट ज्यादा है मतलब लोस्सेस ज्यादा हो रहे है और उपकरणों को चलने के लिए ज्यादा energy लग रही है चलने के लिए.
आपने कैपासिटर को फैन (fan) में, सिंगल फेज़ इंडक्शन मोटर में देखा होगा. फैन में भी सिंगल फेज़ इंडक्शन मोटर ही होती है. यह मोटर सेल्फ स्टार्ट (self start) नहीं होती मतलब इसे सुरुवात में चलाने के लिए धका देना पड़ता है. तो कैपासिटर क इस्तमाल करके मोटर्स को सेल्फ़ स्टार्ट बनाया जाता है. कैपासिटर को वाइंडिंग के सीरीज में और सप्लाई के पैरेलल में कनेक्ट करते है.
सिंगल फेज मोटर में दो वाइंडिंग होती है मेन वाइंडिंग (main winding) और स्टार्टिंग वाइंडिंग (starting winding). अगर कैपासिटर स्टार्टिंग वाइंडिंग के सीरीज में कनेक्ट है तो उस मोटर को कैपासिटर स्टार्ट मोटर बोलते है क्यूंकि स्टार्टिंग में कैपासिटर कनेक्ट रहता है और जब मोटर घुमने लगती है तो कैपासिटर को स्टार्टिंग वाइंडिंग से आटोमेटिक centrifugal स्विच के मदत से डिसकनेक्ट (disconnect) किया जाता है.
Need of Dielectric Material in Capacitor( कैपासिटर में dielectric मटेरियल की जरूरत क्यूँ है?)
हमने सुरुवात में पढ़ा था कैपासिटर में दो प्लेट्स होती है और उनके बिच में dielectric मटेरियल होता है. अब समजो बिना dielectric का इस्तमाल करके मतलब दोनों प्लेट्स के बिच में बस हवा है, तो क्या होगा उन दोनों प्लेट्स के बिच में लीकेज करंट (leakage current) फ्लो होगा और स्पार्क भी हो सकती है और अगर उन दोनों प्लेट्स के अक्रॉस ज्यादा वोल्टेज होगा तो ज्यादा करंट भी फ्लो हो सकती है. जब हम dielectric मटेरियल इस्तमाल करते है dielectric मतलब ऐसा मटेरियल मटेरियल जिसकी conductivity बहोत कम होती है, तो लीकेज करंट फ्लो होने के चान्सेस कम हो जाते है. निचे कुछ मटेरियल की लिस्ट दी हुइ है.
- ceramic (सिरेमिक)
- aluminium oxide (एलुमिनियम)
- porcelain (पोर्सिलेन)
- glass (ग्लास)
- fibre (फाइबर)
- mica (माइका)
- bakelite (बकेलाइट)
Types of Capacitor (कैपासिटर के प्रकार)
कैपासिटर के टाइप्स उसमे इस्तमाल किये जाने वाले dielectric मटेरियल पर अवलंबून होते है.
Electrostatic Capacitor (एलेक्ट्रोसटिक कैपासिटर)
- mica capacitor (माइका)
- plastic film capacitor (प्लास्टिक फिल्म कैपासिटर)
- ceramic capacitor (सिरेमिक कैपासिटर)
- paper capacitor (पेपर कैपासिटर)
Electrolytic Capacitor (एलेक्ट्रोल्यटिक कैपासिटर)
- niobium capacitor (नाइओबियम कैपासिटर)
- aluminum capacitor (एल्युमीनियम कैपासिटर)
- tantalum capacitor (टैंटलम कैपासिटर)
Series Connection of Capacitor
कैपासिटर का सीरीज कनेक्शन रेसिस्टर और कैपासिटर के जैसा नहीं होता. अगर दो कैपासिटर C1 और C2 सीरीज में कनेक्ट होगे तो उनका समकक्ष (equivalent) निकालने के लिए अंश (numerator) में उन दोनों कैपासिटर का गुणा (multiplication) करते है और भाजक (denominator) में उन दोनों कापसितो की addition करते है.
👉(1/C)=(1/C1)/(1/C2)
C=(C1*C2)/(C1+C2)
eg. C1=5, C2=10
C=(5*10)/(5+10)
C=(50/15)=3.34F
Parallel Connection of Capacitor
अगर दो कैपासिटर पैरेलल में कनेक्ट होगे तो उनका समकक्ष (equivalent) कैपासिटर निकालने के लिए दोनों कैपासिटर C1 और C2 की addition करनी होती है. समजो C1 की वैल्यू है 10 फैरड और C2 की वैल्यू है 20 फैरड तो उन दोनों वैल्यू की addition करके समकक्ष निकालते है.
👉C=C1+C2=10+20=30F
Voltage Division Rule for Capacitor
समजो दो कैपासिटर सीरीज में कनेक्टेड है और किसी एक के अक्रॉस में वोल्टेज निकालना है. तो क्या कीजिये पहिले वोल्टेज सोर्स के वैल्यू को लिखिए मतलब जितना वोल्टेज दिया हुआ है उसे लिखिए और बादमे जिस कैपासिटर के अक्रॉस में वोल्टेज निकालना है उसे मत लिखिए जो दूसरा कैपासिटर होगा उसे लिखिए और उनका गुणा कीजिये और जो वैल्यू आएगी उसे उन दो कैपासिटर की addition करके जो वैल्यू आएगी उससे डिवाइड कीजिये. लेकिन रेसिस्टर और इंडक्टर में यह उलट होता है. एक बात ध्यान में रखिये वोल्टेज डिवीज़न रूल हम तभी इस्तमाल कर सकते है जब एलेमेंट्स सीरीज में कनेक्ट होंगे, पैरेलल में हम VDR इस्तमाल नहीं कर सकते क्यूंकि पैरेलल में एलिमेंट के अक्रॉस में सेम वोल्टेज होगा.
- वोल्टेज अक्रॉस कैपासिटर 1👇
👉Vc1=(V*C2)/(C1+C2)
- वोल्टेज अक्रॉस कैपासिटर 2👇
👉Vc2=(V*C1)/(C1+C2)
Current Division Rule for Capacitor
अगर दो एलिमेंट पैरेलल में कनेक्ट होगे तभी CDR इस्तमाल कर सकते है क्युंकी पैरेलल कनेक्शन में हर एलिमेंट के अक्रॉस में सेम वोल्टेज मिलता है. CDR हम सीरीज में इस्तमाल नहीं कर सकते क्यूँ की सीरीज में करंट सेम होता है. समजो दो कैपासिटर C1और C2 सीरीज में कनेक्टेड है तो क्या कीजिये जो जो सोर्स से आने वाला करंट है उसे लिखिए बादमे जिस कैपासिटर में से फ्लो होने वाला करंट निकालना है उसे लिखिए और उनका गुणा कीजिये और बादमे उन दो कैपासिटर की addition करके डिवाइड कीजिये.
- C1 में से फ्लो होने वाला करंट👇
👉Ic1=(I*C1)/(C1+C2)
- C2 में से फ्लो होने वाला करंट👇
👉Ic2=(I*C2)/(C1+C2)
Difference Between Capacitor and Capacitance
हमने सुरुवात में ही देखा की कैपासिटर एक पैसिव कॉम्पोनेन्ट और electrical energy को स्टोर करता है.capacitance कोई कॉम्पोनेन्ट नहीं होता यह कैपासिटर की प्रॉपर्टी है.
Difference Between Capacitor and Inductor
कैपासिटर इलेक्ट्रिकल एनर्जी को इलेक्ट्रिक फील्ड में स्टोर करता है और इंडक्टर इलेक्ट्रिकल एनर्जी को मगनेटिक फील्ड में स्टोर करता है.
कैपासिटर DC को ब्लाक करता है और इंडक्टर AC को ब्लाक करता है.
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